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ओ उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह / अज्ञेय

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ओ उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह-
इस प्रेमी उर में जागी है प्रिय होने की चाह!
अन्धकार में क्षीण ज्योति से पग-पग रहा टटोल-
आज चला खद्योत माँगने वाडव-उर का दाह!

लाहौर, 15 अप्रैल, 1936