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ओ कान्हा मोरी भर दो गगरिया / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ओ कान्हा, मोरी भर दो गगरिया
भर दो भरा दो, सर पे धरा दो
ओ कान्हा, बतला दो डगरिया। ओ कान्हा...।
गोकुल नगर में लगी है बजरिया
ओ कान्हा, मोह ला दो चुनरिया। ओ कान्हा...।
कोई नगर से वैदा बुला दो
झड़वा दो अरे मोरी नजरिया। ओ कान्हा...।
मैं तो रंग गई, कान्हा रंग में
सूझे न मोहे, कोई डगरिया।