ओ जर्मनी, म्लान माँ ! / बैर्तोल्त ब्रेष्त / अनिल एकलव्य
औरों को बोलने दो उसकी शर्म के बारे में,
मैं तो अपनी शर्म के बारे में बोलता हूँ।
ओ जर्मनी, म्लान माँ !
तुम कितनी मैली हो
अब जबकि तुम बैठी हो
और इतरा रही हो
कीचड़ सनी भीड़ में।
तुम्हारा सबसे ग़रीब पुत्र
बेजान होकर गिर पड़ा।
जब भूख उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गई।
तुम्हारे अन्य पुत्रों ने
अपने हाथ उसके ख़िलाफ़ उठा दिए।
यह तो कुख्यात है।
अपने हाथ इस तरह उठाकर,
अपने ही भाई के विरुद्ध,
वो तुम्हारे चारों तरफ़ घूमते हैं
और तुम्हारे मुँह पर हंसते हैं।
यह भी सर्वज्ञात है।
तुम्हारे घर में
दहाड़ कर झूठ बोले जाते हैं
लेकिन सच को
चुप रहना होगा
क्या ऐसा ही है?
क्यों उत्पीड़क तुम्हारी प्रशंसा करते हैं दुनिया भर में,
क्यों उत्पीड़ित निन्दा करते हैं?
जिन्हें लूटा गया
तुम्हारी तरफ़ उँगली उठाते हैं, लेकिन
लुटेरा उस व्यवस्था की तारीफ़ करता है
जिसका अविष्कार हुआ तुम्हारे घर में !
जिसके चलते हर कोई तुम्हें देखता है
अपनी ओढ़नी का किनारा छुपाते हुए, जो कि ख़ून से सना है
उसी ख़ून से जो
तुम्हारे ही पुत्रों का है ।
तुम्हारे घर से उग्र भाषणों की प्रतिध्वनि को सुन कर,
लोग हंसते हैं।
पर जो भी तुम्हें देखता, अपनी छुरी पर हाथ बढ़ाता है
जैसे कोई डाकू देख लिया हो।
ओ जर्मनी, म्लान माँ !
क्या तुम्हारे पुत्रों ने तुम्हें मजबूर कर दिया है
कि तुम लोगों के बीच बैठो
तिरस्कार और भय की वस्तु बनकर !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल एकलव्य