भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओ जानेवाले, हो सके तो लौट के आना / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ जानेवाले, हो सके तो लौटके आना
ये घाट तू ये बाट कहीं भूल न जाना
ओ जानेवाले, हो सके तो लौटके आना

बचपन के तेरे मीत, तेरे संग के सहारे
ढूँढ़ेंगे तुझे गली-गली सब ये ग़म के मारे
पूछेगी हर निगाह कल तेरा ठिकाना
ओ जानेवाले, हो सके तो लौटके आना

दे-दे के ये आवाज़ कोई हर घड़ी बुलाए
फिर जाए जो उस पार कभी लौट के न आए
है भेद ये कैसा कोई कुछ तो बताना
ओ जानेवाले, हो सके तो लौटके आना

(फ़िल्म - बन्दिनी 1963)