भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओ परेम / गौरीशंकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ परेम
बरूट है कांई
आ चाव
बाखड़ी है कांई
आ अचपकी री मुळक
तुम्बै री बैल है कांई
सोधूं अर सोधतो रैवूं
ओ परेम है कांई।