ओ वर्षा के पहले बादल! / विमल राजस्थानी
ओ वर्षा के पहले बादल! मेरी ‘दुपहर’ पर मत छाना
जो पीछे आ रहे उन्हें भी मेरी यह बिनती बतलाना
ओ वर्षा के पहले बादल!
यह ‘दुपहर’ तो बहुत भली है
‘उपहारों’ के संग मिली है
अति सुखकर, अतिशय शीतल है
जलते जीवन का सम्बल है
तिल-तिल जलते देख मुझे तुम मत करुणा के कण बरसाना
ओ वर्षा के पहले बादल!
इसकी तपन बहुत मीठी है
इसकी आँच बहुत प्यारी है
मेरी यह ‘दुपहरी’ अनूठी
जग की दुपहर से न्यारी है
प्रिय की यह प्रिय देन इसे तुम छाया भी अपनी न छुलाना
ओ वर्षा के पहले बादल!
प्रिय ने दी यह आग कि जल-जल-
कर जग में प्रकाश फैलाऊँ
दर्दों की दी बीन कि गा-गा-
कर दुनिया का मन बहलाऊँ
आँसू दिये कि खुद प्यासा रह सीखूँ जग की प्यास बुझाना
ओ वर्षा के पहले बादल!
यादों की कौंधों के आगे
तेरी बिजली फीकी-फीकी
हिम से भी शीतल मन बाला
जलन भला क्या जाने जी की
विरह-यज्ञ के हवन-कुंड की इन लपटों को मत पी जाना
ओ वर्षा के पहले बादल!
-6 अगस्त, 1976