भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

औघड़ / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोनी बगत रै
आँख
पण फिरै रूळतो
पकड्यां
डीकरी पून री आंगळी
दुऐ
धरती रै गोवणिंयैं में
रात री भैंस रो दूध दिन
सेकै
तारां री भोभर में
चांद री बाटी
धरै आभै री थाळ में
सूरज री इडली
छमकै समदर रो
सलूणो रायतो
गिटै गासियां सागै
आखी जीवा जूण
ईं सिंग्याहीण नै
भोळो मिनख कवै हूण ?