औरतें कंजूस होती हैं / रंजना जायसवाल
सही सुना आपने
औरतें कंजूस होती हैं
खर्च नहीं करती हैं वो
यूँ ही बेवजह
चुरा लेती है पूंजी कभी
अपने पति की नजरों से
छिपा लेती है कभी
आँचल के छोर में
तो कभी ब्लाउज की ओट में
उनके बटुए
पूरे घर में फैले रहते हैं
छुपा लेती है
वो उस पूंजी को
कभी चावल के कनस्तर में
तो कभी ईश्वर की तस्वीरों के पीछे
नहीं जानती वो
ईश्वर से कुछ नहीं छिपता
मुंदी आँखों से भी
वो देख लेता है उनका हर फलसफा
मुस्कुरा देता है वह भी
उनकी इस अदा पर
क्योंकि वह भी जानता है
औरतें कंजूस होती हैं
सच पूछो
तो वह ही जानता है
औरतें कंजूस होती हैं
क्योंकि वह ख़र्च कर देती हैं
तुम्हारे गाढ़े समय पर
रख देती हैं हाथों में तुम्हारे
हर मुश्किल डगर पर
चुपके से पकड़ा देती हैं
ससुराल जाती बेटियों को
चौंका देती है महीने के आखिरी दिनों में
सचमुच...
औरतें बहुत कंजूस होती हैं।