औरत और उसका शरीर / रवीन्द्र दास
ख़ूबसूरत औरत का शरीर ख़ूबसूरत होता है
उसी शरीर में
औरतपन
और औरत-मन रहता है
तय है -
औरत का मतलब पत्नी नहीं
न माँ, न बहन
औरत का मतलब -जीवित औरत शरीर
कहीं कोई ग़लतफ़हमी नहीं,
कोई विरोधाभास नहीं ।
शरीर के आलावा कोई सबूत नहीं
कोई मर्द, कोई औरत, कोई...
००
एक दुनिया
एक बाज़ार, और रोज़ बनती बिगडती
तहजीबों की तकरीर
यानि दुनिया का क़ायदा
बाज़ार की तरकीब
००
युगों से गुज़ारकर , तकलीफ़ों से तराशकर
बचाया एक लफ़्ज़ -
मूल्य ।
दुनिया और बाज़ार
दोनों कैनवास पर यह जुमला
यूँ बैठा के दोनों एक-म-एक हो गए।
००
ख़ूबसूरती एक मूल्य है ,
नहीं छोड़ता है कोई मूल्य को ।
कलाकार , दुकानदार, पंडा चाहे दलाल
सभी करते बातें मूल्यों की
बेशक ,
ख़ूबसूरत औरत का मूल्य होता है
मूल्य ग्राहक देता है
कई बार पसंद आने पर ,
कई बार धोखे में
००
दुनिया या बाज़ार
नहीं बनते किसी की मर्ज़ी से
कोई बदलता है अपना मन
बदल जाती है -
उसकी दुनिया
दीखता है बदला हुआ बाज़ार
लेकिन हर जगह चलता सिक्का मूल्यों का
कोई माने या न माने,
ख़ूबसूरत औरतें नहीं, शरीर होता है
शरीर की ही दुनिया शरीर का ही बाज़ार
इसका मतलब यह नहीं
के मर्द बाहर होता है शरीर के
तो भी ,
बदली हुई दुनिया
मर्द के ही आजू-बाजू
आगे-पीछे...