भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरत का दुःख / अनिता मंडा
Kavita Kosh से
औरत का दुःख इतना घना था
तपते सूरज से तालाब सूख गए
दुःख ओस सा बना रहा
उसने अपना दुःख गीतों में ढाला
हवाओं को सुनाया
लताओं को सुनाया
अकेली बैठी चिड़िया को सुनाया
बीच चौराहे गाँव को सुनाया
नदी, समुद्र, जंगल को सुनाए गीत
सारा आसमान गीतों से भर गया
औरत पर दुःख ही बरसा
उसके आँसू सूखे नहीं।