औरत होने का मतलब / बाल गंगाधर 'बागी'
पुत्री गर्भ में ही देखते हैं
पैदा होने से पहले गला घोंटते हैं
बेटा होने पर बजती बधाइयां हैं
बेटी होने पर होती लड़ाईयां हैं
औरत को ऊपर से डांट लगाते हैं
बेटी को देखकर मुंह फाड़ते हैं
पीटते हैं कितना कैसी गाली देते हैं
बेटी व माँ का कुसूर मानते हैं
एक तरफ माँ की पूजा करते हैं
इंसान क्या पशुओं को भी माँ कहते हैं
पर बेटी से नफरत क्यूं इतना करते हैं
वे ऐसी ऊंच-नीच की संस्कृति मानते हैं
ज़िन्दगी में लड़की कुछ भी बन जाए
लड़के वाले दहेज मांगते हैं
कहते हैं क्या है कमी उसके घर में
रुपया व गाड़ी मंुह खोल मांगते हैं
बेटों का मोल दहेज में होता है
बेटी वाला परिवार कितना रोता है
पर वही बाप भी दहेज मांगता है
जो बेटी की शादी में रोता रहता है
मैंने भी बेटी को दहेज दिया है
लड़के वालों से कुछ न लिया है
बेटे की शादी में दहेज तो मांगूगा
गाड़ी बंगले का शौक भी पालूंगा
देखो इस चक्र में रिश्ता किस अर्थ में
पिसती हें बेटियां दहेज के उपलक्ष्य में
सास-ससुर से ससुराल में पिटती हैं
दूल्हे राजा के गले जब पड़ती हैं
शान व शौकत को लड़का निहारता है
बाप भी कैसी अंग्रेजी छांटता है
गुटरगूं बीवी से सवाल पूछता है
तेरा बाप देने से क्यों पीछे भागता है
स्टोप के बहान दुल्हन हैं जला देते
गैस की आग, घर में हैं फैला देते
सारे सबूत1 जला के हैं मिटाते
उलटे घड़ियाली आंसू हैं बहाते
लड़कियांे को ऐसे जला के मारते हैं
बेटों की दूसरी शादी रचाते हैं
वहाँ भी यही कानून अपनाते हैं
दहेज में कुद न तो कुछ मांगते हैं
फिर से जब बेटी पैदा हो जाती है
फिर वही खौफ की आवाज आती है
सास भी बहू न बेटी संभालती है
मुंह को बनाकर कुद यूं निहारती है
औरत को आदमी समझा नहीं क्यों
औरत की औरत कदर न जानती है
दोनों मोहब्बत क्यों इस तरह हैं करते
पर सास बन बहू न बेटी मानती है
बहन भाभी सास को फिर भी मानती है
दलित औरत से छुआछूत मानती है
यहाँ उस नारी के प्यार को भी देखो
जो औरत को औरत नहीं मानती है
प्रसव के वक्त जाती है दलित स्त्री
दोनों को संभाल कर बचाती है ज़िन्दगी
कई-कई हफ्तों तक तेल मालिश करती है
अंत में अछूत उनकी नजर में बनती है!