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और उसकी आस्तीन की तह में / अवधेश कुमार
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और वहाँ कैक्टस के पीप का समन्दर है
और वहाँ गुम्बद के भीतर एक गूँज आत्महत्या की है
और वहाँ शेर के पँजे में छुपा एक काँटा है
और वहाँ बैल का पिचका हुआ कन्धा है
और वहाँ साँप की निकाल ली गई ज़हर की थैली है
और वहाँ कंकाल को सूँघती हुई निराकार आत्मा है
और वहाँ भौंचक खड़ा एक परमेश्वर है
और वहाँ परमेश्वर के पैरों को धरकर जमता सीमेण्ट है
और वहाँ सीमेण्ट में बदलता यह ब्रह्माण्ड है
और वहाँ आने वाले कल की ख़बरों वाला एक अख़बार है
और इन सबके नीचे दबा जो हस्ताक्षर है
मैं : वह केवल मैं हूँ