भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और काहि माँगिये, को मागिबो निवारै / तुलसीदास
Kavita Kosh से
और काहि माँगिये, को मागिबो निवारै।
अभिमत दातार कौन, दुख-दरिद्र दारै॥
धरम धाम राम काम-कोटि-रूप रूरो।
साहब सब बिधि सुजान, दान खड्ग सूरो।
सुखमय दिन द्वै निसान सबके द्वार बाजै।
कुसमय दसरथके दानि! तैं गरीब निवाजै॥
सेवा बिनु गुन बिहीन दीनता सुनाये।
जे जे तैं निहाल किये फूले फिरत पाये॥
तुलसीदास जाचक-रुचि जानि दान दीजै।
रामचंद्र चंद तू, चकोर मोहि कीजै॥