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और किसी से प्यार न करना / कमलेश द्विवेदी

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यह है मेरा नम्र निवेदन प्रियतम तुम इनकार न करना।
जितना प्यार किया है मुझसे और किसी से प्यार न करना।

प्यार अपार तुम्हारे दिल में
वैसे तो मैंने यह माना।
लेकिन सबको नहीं बाँटना
दिल का यह अनमोल ख़ज़ाना।
मुझे समझना लक्ष्मण-रेखा, इस रेखा को पार न करना।
जितना प्यार किया है मुझसे और किसी से प्यार न करना।

तुम हँसमुख हो मिलनसार हो
इसीलिए सबको भाते हो।
वो खुश होता जिसके सँग तुम
दो पल हँसते-मुस्काते हो।
लेकिन कोई प्यार समझ ले तुम ऐसा व्यवहार न करना।
जितना प्यार किया है मुझसे और किसी से प्यार न करना।

यों मालिक हो अपने दिल के
उसको चाहे जहाँ लगा लो।
अपने दिल के सिंहासन पर
जिसको चाहो उसे बैठा लो।
मगर कभी मेरे जीते जी तुम उसको स्वीकार न करना।
जितना प्यार किया है मुझसे और किसी से प्यार न करना।