भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और क्या इस शहर में धंधा करें / ‘शुजाअ’ खावर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़्वाब इतने हैं यही बेचा करें
और क्या इस शहर में धंधा करें

क्या ज़रा सी बात का शिकवा करें
शुक्रिये से उसको शर्मिंदा करें

तू कि हमसे भी न बोले एक लफ़्ज़
और हम सबसे तिरा चर्चा करें

सबके चेह्रे एक जैसे हैं तो क्या
आप मेरे ग़म का अंदाज़ा करें

ख़्वाब उधर है और हक़ीक़त है इधर
बीच में हम फँस गये हैं क्या करें

हर कोई बैठा है लफ़्ज़ों पर सवार
हम ही क्यों मफ़हूम का पीछा करें