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और तुम सोच रहे थे, मैं भी वैसी ही हूँ / आन्ना अख़्मातवा / अनिल जनविजय

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और तुम सोच रहे थे कि मैं भी वैसी ही हूँ
मुझे भूल सकते हो तुम आसानी से
रो-रो कर दुआ करूँगी और कूद पड़ूँगी
घोड़ॊं के खुर के नीचे नादानी में

या मैं ओझाओं से जाकर यह माँगूँगी
कि दें वे मुझे टोटका या मन्त्रसिद्ध पानी
और फिर भेजूँगी तुझे उपहार में अपना
महकता हुआ कीमती दुपट्टा लासानी
 
लानत है, तुझ पर, मैं न रोऊँगी पल भर को
छेड़ूँगी नहीं मैं तेरी वो कहर भरी रुह 
लेकिन क़सम खाती हूँ मैं पैगम्बर की
तू सुनेगा नहीं मेरी अब चीख़-चिल्लाहट, कूह

नेक ख़ुदाई फ़रिश्ते की अब मुझे है क़सम 
रिश्ते जल गए हमारे अब बची नहीं भसम
तुम्हारे पास लौटने की अब होगी नहीं रसम ।

जुलाई 1921, त्सर्सकोए स्येला
 
मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                 Анна Ахматова
        А ты думал - я тоже такая...

А ты думал - я тоже такая,
Что можно забыть меня,
И что брошусь, моля и рыдая,
Под копыта гнедого коня.

Или стану просить у знахарок
В наговорной воде корешок
И пришлю тебе странный подарок -
Мой заветный душистый платок.

Будь же проклят. Ни стоном, ни взглядом
Окаянной души не коснусь,
Но клянусь тебе ангельским садом,
Чудотворной иконой клянусь,
И ночей наших пламенным чадом -
Я к тебе никогда не вернусь.

Июль 1921, Царское Село