और नहीं कुछ माँग रहे, बस मात्र मिले श्रम से द्वय रोटी।
किन्तु अरी! यह हो न सकी, परिपूरित आहत चाहत छोटी।
ज्ञात नहीं कुछ मानव की, अति क्यों रचता हरि क़िस्मत छोटी।
प्यास लिए चिर भूख लिए, चलती बस साँस लपेट लँगोटी।
और नहीं कुछ माँग रहे, बस मात्र मिले श्रम से द्वय रोटी।
किन्तु अरी! यह हो न सकी, परिपूरित आहत चाहत छोटी।
ज्ञात नहीं कुछ मानव की, अति क्यों रचता हरि क़िस्मत छोटी।
प्यास लिए चिर भूख लिए, चलती बस साँस लपेट लँगोटी।