और फुर्सत में धोया
गर्म पानी में डुबोकर
थपकी से कूट-कूट कर
सूती कपड़े की तरह 
रगड़-रगड़कर
बड़े इत्मिनान से
और फुर्सत में धोया 
रंगीन-चमकीले सपनों को 
तूने ओ जिन्दगी!
रंग फीके पड़ गए
हैरानी यह है कि 
इन्हें न सहेज सकने का
इल्जाम भी मेरे ही सिर आया।