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और सब ठीक है ! / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
जगमगाती रोशनियों वाले
इन सोते हुए से घरों में
जागती होंगी जाने कितनी अनकही कहानियाँ
किसी एक रोशनी के पार
एक बेरोज़गार ने खाने में मिला दिया होगा थोड़ा-सा ज़हर
और चैन की नींद सो रहा होगा पूरा परिवार,
इन्ही किन्ही खिड़कियों के पीछे
करवटें बदलती एक औरत
कभी-कभी घूरती होगी पंखे को,
इसी रोशनी के साये में
जुड़े होंगे कुछ हाथ बेचैन प्रार्थना में
दिन भर से बाहर गई लड़की की
अब तक नहीं आई कोई ख़बर
और आँसुओं से भरी आँखों को
धुन्धला नज़र आता होगा सोते हुए बच्चे का चेहरा
शायद यहीं कुछ अँखुआए सपने
खोज रहे होंगे ब्लेड
टूटे सपनों को
उम्र भर की हक़ीक़त मानते
आधी रात
चीख़ता है चौकीदार -- जागते रहो
और कुछ जोड़ी आँखें
फिर कभी नहीं सो पाती होंगी
जगमगाती रोशनियों के पार