भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और हंसो.... / नीरज दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जरूरी है
हवा का चलना
दिन का ढलना
मैसम का बदलना

जरूरी है
शब्द का आना
गीत का गुनगुनाना
कवि का फुसफुसाना

जरूरी नहीं है
बच्चे का तितली पकड़ पाना
आप कहे रुको तो रुकना....
और हंसो.....।