कंचन काया हवय तोर / रमेशकुमार सिंह चौहान
(यह रचना कज्जल छंद में है)
कंचन काया हवय तोर।
लजागे चंदा सुन सोर।
कतका सुघ्घर तोर गोठ।
सुन कोयल करे मन छोट।
चुन्दी कारी तोर देख।
घटा बादर होगे पेख। पेख-पेखन-खिलौना
पारे पाटी बने मांग।
पाछू फूल गजरा टांग।
मांगमोती आघू ओर।
सुरूज जस चमके खोर।
माथा टिकली गोल गोल।
समा गे जम्मा भूगोल।
नाक नथनी झुमका कान।
आंखी तोर तीर कमान।
ओट तोरे फूल गुलाब।
दे गोइ अनमोल खिताब।
सुराही गर्दन श्रृंगार।
पहिरे तै सोनहा हार।
लाली लुगरा डारे खांध।
कनिहा म करधनिया बांध।
रून झुन करे साटी गोड़।
सुन देखय सब मुह ल मोड़।
तोरे सोलहो सिंगार।
मुरदा देही जीव डार।
मेनका उर्वशी सबो फेल।
हवय रूप मा जादू खेल।
फर्सुत म विधाता गढ़े।
देखे बर देवता ह खड़े।
मोला तै कनेखी देख।
मया कर हू मै अनलेख।
देख तोर एक मुस्कान।
दे दू हूं गोइ अपन जान।