भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कंटकों की राह / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
कंटकों की राह फूलों में बदलना चाहिए।
हो उजाला सत्य का वह रवि निकलना चाहिए।
राह की बाधा मिटे जब भूल कोई हो नहीं,
मीत भावों का हृदय में दीप जलना चाहिए।
शूल में भी फूल खिलते है विकल मन क्यों भला,
मर्म छूते भाव अपने फिर सँभलना चाहिए।
हो सुखों की चाह यदि मनको जगाना है हमें,
धुंध नयनों से हटा रिश्ते सुलझना चाहिए।
आपसी कटुता मिटेगी हो उदित जन भावना
हार मन की जीत बनती उर पिघलना चाहिए।
प्रीत पावन दे गए नीरज सदी की साधना,
गीत अधरों को मिला है मीत मिलना चाहिए।