हम सब अग्नि-युग में
अग्निक ऊपर द' कए भ्रमण केलहुँ।
भ्रम हमरा सभक आदर्श कें ज़रा नहि सकल ;
सागर हमरा सभक प्रतिबन्धक नहि भेल,
ओकर हृदय-द्वार 'मोजेक' भ' गेल छल।
कण्टक कें केलहुँ पददलित, परन्तु हम सब छी चाणक्यक भग्नावशेष।
तैं ओकरा उन्मूलित नहि केलहुँ।
ओकर ऊपर द' कए गेल छी पूर्णक दिस, पूर्ण क सन्धान मे।
सामने कालक मुख-व्यादन
उत्साहक प्रतिबन्धक अछि।
लौटैत काल देखलहुँ-
कण्टक छल बीया;
परिणत भेल अछि दुर्भेद्य अरण्य मे।