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कंटक भेल अछि दुर्भेद्य अरण्य / उदय नारायण सिंह 'नचिकेता'
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					हम सब अग्नि-युग में 
अग्निक ऊपर द' कए भ्रमण केलहुँ। 
भ्रम हमरा सभक आदर्श कें ज़रा नहि सकल ;
सागर हमरा सभक प्रतिबन्धक नहि भेल, 
ओकर हृदय-द्वार 'मोजेक' भ' गेल छल।
कण्टक कें केलहुँ पददलित, परन्तु हम सब छी चाणक्यक भग्नावशेष। 
तैं ओकरा उन्मूलित नहि केलहुँ। 
ओकर ऊपर द' कए गेल छी पूर्णक दिस, पूर्ण क सन्धान मे। 
सामने कालक मुख-व्यादन
उत्साहक प्रतिबन्धक अछि।
लौटैत काल देखलहुँ- 
कण्टक छल बीया; 
परिणत भेल अछि दुर्भेद्य अरण्य मे।
	
	