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कङै गई होक्यां की गुङ गुङ वे बड्डे श्याणे कङै गए / विरेन सांवङिया

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कङै गई होक्यां की गुङ गुङ वे बड्डे श्याणे कङै गए।
हो थी रौनक गालां मै वे गाम पुराणे कङै गए॥

भर-भर होक्के बैठा करते टोल कसूते गालां मै।
तेल घाल कै बाला करते एक चिमनी घर आलां मै।
कुछ घाल मिठाई पीपे मै वा राख थी दादी तालां मै।
कई गीत रागणी गाया करते बैठ कै खेत रूखालां मै।
आज तर्ज लावणी बहरे तबील वे देशी गाणे कङै गए॥

फटा कूङ्ता टूटे लित्र एक चिलम राखै था हाली का।
बागां के म्हा बोल काफिए दिल मोहवै था माली का।
गौधूली गदराया करदी जब मूङा करै था पाली का।
बलध, बछेरी की दौङा मै घणा सौर होवै था ताली का।
जङै हाण दिवाणे बैठा करतेवे ट्योल ठिकाणे कङै गए॥

पिछली गली के गिदवाङा मै फेटण चन्द्रो का आणा।
वा घुघँट गाती नारां की वो मिठा मिठा शरमाणा।
नई बहू का नणदी गेल्या होली होली बतलाणा।
कूवे उपर छम छम करदी बीरां का आणा जाणा।
आज देवर भाभी के झगङे वे हसीं उलाहणे कङै गए॥

सांगी सांग भतेरे करते मेले भरते भोत घणे।
सांप सपेरे देखे जादू करतब करते भोत घणे।
खागङ झोटे लङते देखे दूर तै डरते भोत घणे।
नई बहू और चोर सिपाही खेला करते भोत घणे।
ईब गिट्टे बिज्जो डंके आले खेल निमाणे कङै गए॥

बङ पिपल थे जोहङ किनारै बडी लार हांडती मौरां की।
पालां पै चढ दिखा करती बणी कसूती जौरां की।
थे एक घाट मै हाली पाली दूजे मै थी जगहां ढौरां की।
गादङ बिल्ले सूसे हांडै किमे जगहां खोडर मै औरां की।
ईब देखै बाट पखेरू बैठे वै चूग्गे दाणे कङै गए॥

कोए सूरता कोए था रिशाले कोए गोदू तै भोलू थे।
कई पंचायती घणे जोर के कई नरे झूठ के बोलू थे।
ताता ताता गुङ खावण नै गाम के गौरै कोल्हू थे।
दूध निखङू घी टिंडी हर घर मै शीत के डोलू थे।
मीठे चावल गूँद राबङी वे देशी खाणे कङै गए॥

देवठणी नै भर भर झोली दाणे मांग कै लाया करते।
किसेकी घोङी किसेका बाजा हम तै बस नाचाया करते।
बखते बखत उठ बणी तै पांख मौर की लाया करते।
बची खिचङी घोल शीत मै तङके तङक खाया करते।
रूखां पर कै डाक मारके वे जोहङ मै नहाणे कङै गए॥

काली जूती धौला खंडका मूछाँ मै मार मरोङी रै।
कई शौकीन गाबरू राख्या करते खास किस्म की घोङी रै।
घर घर मै थी मूर्हा झोटी और बैला की जोङी रै।
मैले हों थे लत्ते चाहे पर रहै थे सब एक ठोङी रै।
आज दामण कूङ्ते धौती आले वे देशी बाणे कङै गए॥

मांद बिटोङे कहया करै थे शान शक्ल सब गाम की।
बिच बिचाले मंदिर के म्हा पूजा हो थी राम की।
दरवाजां मै तख्ता उपर जगहा हो थी आराम की।
था आदरमान बुजुर्गां का थी कदर कसूती काम की।
आज आशिषां के प्रेम भरे वे बोल सुहाणे कङै गए॥

चरखे के वै कातण आली आज दिखै नहीं लुगाई रै।
चाक्की, चूल्हे माटी के ना आगँण की रही लिपाई रै।
खूगी सारी कलम वे तख्ति ढूलगी सारी स्याही रै।
लख्मिचंद के जिकर बिना आज सून्नी सै कविताई रै।
सांवङिया बस रहगी काहणी वे टेम नै जाणे कङै गए॥