कच्चे चाँद को देखा है / बोधिसत्व
तुमने कच्चे चाँद को देखा है
किसी एकदम कोमल कच्चे चाँद को
गोबर और चिकनी मिट्टी से बने चाँद को
भूंसी और पुआल से बने चाँद को
कुम्हार के चाक पर चढ़े चक्कर काटते चाँद को।
ऐसे चाँद को जिसकी छाती पर
खड़ाऊँ पहन कर टहल गया है कोई
अभी-अभी
कोई कैसे चल सकता है कच्चे चाँद की छाती पर
कच्ची छाती पर कौन टहल सकता है
वह भी खड़ाऊँ पहन कर
गीली और नम ज़मीन पर चलना भी
कठिन होता है
और इस तरह कुछ कुचलते विदीर्ण करते हुए चलना कितना
कठिन है।
कभी सोचा है विदर्ण करना जितना कठिन है तुम्हारे लिए
उतना ही सरल भी है
कुछ भी तोड़ देना, काट देना फोड़ देना, गिरा देना, ढहा देना
मिटा देना, नष्ट कर देना
सबसे सरल है चोट करना
सहेजना-सम्हालना कितना कठिन,
कठिन है कच्चे चाँद की छाती पर खड़ाऊँ पहन कर टहलना।
बाहर निकलता हूँ
आने और जाने के, भगदड़ और दौड़ने के निशान दिखते हैं
कौन गया कुचलता हुआ
कच्चे चाँद को
गोबर और भूँसी से बने चाँद को
उस पर तो उँगलियों के निशान थे
किसी के।
तुम तो नहीं थे
वे पैर तुम्हारे तो नहीं थे
वो खड़ाऊँ तुम तो नहीं पहने ते
देखो मिट्टी में लिपटे हैं तुम्हारे पैर या कुछ और
देखो
अभी न दिख रहा हो तो उजाला होने तक रुको
अगले चाँद के उजाले तक रुकना पड़े तब तक रुको
अगली दौड़ के पहले देखो
जो बिना अपना पैर देखे दौड़ते हैं
वे कहाँ दूर तक जा पाते हैं
जो बिना अपना खड़ाऊँ देखे दौड़ते हैं
वे कहाँ-कहीं भी पहुँच पाते हैं
देखो आकाश में चाँद की सिसकी व्याप रही है
सुनों धरा को एक-एक कर चौतरफ़ा रुलाई ढाँप रही है।
तुम्हें जितना दौड़ना हो दौड़ो लेकिन देख लो
तुम किसी चाँद पर तो नहीं दौड़ रहे
कच्चे चाँद पर
गोबर और भूँसी से बने चाँद पर
पुआल और सूखे पत्तों से बने चाँद पर।
चिकनी मिट्टी से बने चाँद पर।