कजरी कौ पय पियहु लाल,जासौं तेरी बेनि बढ़ै / सूरदास
कजरी कौ पय पियहु लाल,जासौं तेरी बेनि बढ़ै ।
जैसैं देखि और ब्रज-बालक, त्यौं बल-बैस चढ़ै ॥
यह सुनि कै हरि पीवन लागे, ज्यों-ज्यों लयौ लड़ै ।
अँचवत पय तातौ जब लाग्यौ, रोवत जीभि डढ़ै ॥
पुनि पीवतहीं कच टकटोरत, झूठहिं जननि रढ़ै ।
सूर निरखि मुख हँसति जसोदा, सो सुख उर न कड़ै ॥
भावार्थ :--(माता यशोदा कहती हैं-) `लाल! कृष्णा गायका दूध पीलो, जिससे तुम्हारी चोटी बढ़ जाय । देखो! जैसे व्रज के और बालक हैं, उसी प्रकार तुम्हारा भी बल और आयु बड़ जायगी ।' (इस प्रकार समझाकर माता ने) जिस-किसी प्रकार लाड़ लड़ा लिया (मना लिया) । श्याम भी माता की यह बात सुनकर (दूध) पीने लगे; किंतु पीते ही जब दूध गरम लगा, तब जिह्वा के जल जाने से रोने लगे । फिर (दूध) पीते ही बालों को टटोलने लगे (कि ये बढ़ भी रहे हैं या ) मैया झूठ ही आग्रह कर रही है । सूरदास जी कहते हैं--यशोदा जी अपने पुत्र के (भोले भावयुक्त) मुख को देखकर हँस रही हैं । यह आनन्द मेरे हृदय से बाहर नहीं होता ।