कजरी आबेॅ किताब पढ़ेॅ लागलोॅ छै
आय वैं पहिलोॅ दाफी किताब पढ़लकै
ऊ बड्डी खुश छै कि
वैं किताब पढ़ेॅ पारेॅ
कजरी शब्दोॅ में छिपलोॅ अर्थ केॅ
आबेॅ बुझेॅ पारै छै
अर्थ के विश्लेषणो करेॅ पारेॅ
विश्लेषण में निहित ध्वनि-व्यंजनोॅ के
मर्म बुझेॅ पारेॅ वैं।
आय ओकरोॅ बाबूं जबेॅ कहलकै
कजरी तेॅ आबेॅ नेता भै गेलै
तेॅ केन्होॅ सिहरी उठलोॅ छेलै
ओकरोॅ ध्वनि व्यंजना सें ऊ
कजरीं आबेॅ जानी गेलोॅ छै
नेता होवोॅ सौंसे व्यवस्था के खिलाफ
मूल्योॅ के उलट-पलट के उत्थान-पतन छेकै
‘होवै’ के खिलाफ
‘नै होवै’ के मुनादी छेकै
जे सनद राखै छै कि आदमी
समृद्धि-लोभोॅ में कत्तेॅ नीचेॅ जावेॅ पारेॅ!
आपनोॅ वास्तें बाबू के वचन सुनी केॅ
कोॅन किसिम सें सिहरी उठली छै कजरी
शब्दोॅ केॅ जानवोॅ
ओकरोॅ भीतरिया अरथोॅ केॅ जानवोॅ
आकि फेनू विशेषण रोॅ ध्वनि केॅ पावी लेवोॅ
की नेता होवोॅ छेकै?
शब्दोॅ के खिलतें-खुलतें अर्थ
आरो ओकरोॅ विवेचना के ध्वनि-भंगिमे में
वैं जानलेॅ छेलै कि आदमी जबेॅ
शब्दोॅ के माया-जाल में उलझी
अनभुआर रं लागेॅ लागै छै
तेॅ ऊ जन्म-जन्मान्तर तांय
ओकरोॅ रूढ़ अर्थ के गुलाम बनी जाय छै
आरो पीढ़ी-दर-पीढ़ी
ओकरा सें मुक्ति लेॅ मंत्र खोजतेॅ फिरै छै।
कजरी तेॅ मुक्ति-युद्ध के मंत्रे पावी लेलेॅ छै
कैन्हें कि ओकरा
शब्दोॅ के अर्थ मिली गेलोॅ छै
अर्थोॅ के विवेचना
आरो ओकरोॅ ध्वनि-व्यंजना के
मर्म खोलवोॅ आवी गेलोॅ छै।
कजरी ई मंत्र मुक्ति-युद्ध में लागलोॅ
ढेरी-ढेर मौगी सिनी केॅ दै लेॅ चाहै छै
जैसंे कि वहू सिनी
शब्दोॅ के अर्थ जानेॅ पारेॅ
अर्थ-विवेचना करेॅ सकेॅ
विवेचना रोॅ ध्वनि-व्यंजना के मर्म गुनेॅ सकेॅ
आरो जिनगी के खूबसूरती के रहस्य
कतेॅ सहज,
सरस आरो कोमल होय छै
एकरा पहचानेॅ पारेॅ।
मुलुक में कजरी सिनी फैली चललोॅ छै
कि मुलुक के सब्भे कजरी किताब पढ़तै
शब्दोॅ के दुनियां जानतै
ध्वनि-व्यंजना रोॅ सीमा पहचानतै।
आबेॅ ओकरोॅ बाबू
ई कही केॅ ओकरोॅ गोड़ोॅ में बेड़ी
नै डालेॅ पारतै
कि
कजरी तेॅ आबेॅ नेता भै गेलै।