भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कज़ा आये मुझे जब भी फिजां खुशबू से भर जाये / हरकीरत हीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कज़ा आये मुझे जब भी फिजां खुशबू से भर जाये
फ़ना हो जिस्म जब मेरा, जहां में नाम कर जाये

नहीं टूटेंगे यूँ हमको अभी कमज़ोर मत समझो
वो पत्थर हूं जो हरइक चोट से कुछ औ' निख़र जाये

ग़मों की आँच भी तुम तक न पहुँचे ऐ मिरे यारा
बड़ी तकलीफ़ होती है अगर दिल पे गुज़र जाये

बचे भोजन घरों में बाँट उसको दो गरीबों में
कहीं ऐसा न हो दे बददुआ तुझको वो मर जाये

तिरे तल्खी भरे ये लफ्ज़ अब भाते नहीं मुझको
कभी तो बात ऐसी कर जो मेरे दिल उतर जाये

कभी तो सुन लगा दिल से मिरे ख़ामोश लफ्ज़ों को
कहीं ऐसा न हो टूटे मुहब्बत औ' बिख़र जाये

कहाँ रहता हमारा दिल तलाशें 'हीर' अब कैसे
किसे है होश अब चाहे मुहब्बत ले जिधर जाये