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कजै अन्हारे अन्हार / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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ने केकरो कोय सुने नै केकरो कोय ताके हे
सब अपन अपन राग अलगे अलापे हे
कजै उठापटक कजै गुत्थमगुत्थी
कजै कोय आग लगैलक कजै फंेके कोय लुत्ती
कजै कोय उखाड़े हे कजै कोय मारे हे

कजै पकड़को केकरो नीबू सन गारे हे
कजै गोली हे कजैरोज होली हे
कजै डर से सटकल अंटकल सबके बोली हे
कोय फरदबाल दौड़े में औंधे गिरल हे
कजै अपहरण में बापबेटा दुनो घिरल

कजै फौदारी कजै मारामारी है
ऐसने लोग सगरो भारी है
जंगल के शेरसन दहाड़ो है
जीते में धरको पछाड़ो है

कजै गिरह कट्टी है कजै लठम लट्ठी है
कजै बीच शहर में चल रहल भट्ठी हे

कजै खेल हे तमाशा हे, कजै पिजा रहल कोय गड़ासा हे
कजै लॉटरी है कर्ज बिछारहल कोय पास हे
कजै नाच हे कजै रंग है, कजै सिनेमा सन भारी हुड़दंग है
कजै घेरा-घेरी है कजै जात-जात में छिड़ल जंग है
कजै राजनीति के साँढ़ चररहल कुल खेत है
कजै मांटी पर फैल रहल रेत है
कजे तोंद तो कजै टोपी हे कजै बैठल पतरका आरोपी है
कजै काछ कजै मोछ है, कजै कट रहल रोज गाछ है

कजै भारी भूख हे कजै समावै ने सुख हे
कजै रोटी नय कजै खाली बोटी हय
कजै अन्हारे अन्हार सगर नगद कजै न उधार
सगरो नेते नेता के केकरा की देता

सुण्डा भरल सगरो अनाज हे
के कहे हे कि आल सुराज हे
मरदाना से बढ़ल जनाना हे,
ऐसने तो आय के जमाना हे