कटी ज़िन्दगी पर लगाना ना आया
लगा ही लिया तो निभाना ना आया
खुदी की बुलंदी रहे नापते हम
कभी हस्ती अपनी मिटाना ना आया
गिरावट का देखा किए हम तमाशा
गो गिरते हुओं को उठाना ना आया
हसीं नक्श हर इक को मसला औ कुचला
अगर्चे कभी कुछ बनाना ना आया
रहे जिन्दगी भर यूं ही बस भटकते
कभी रस्ते सीधे पे जाना ना आया
गरज़ क़े लिए चाहे सब कुछ लुटा दें,
बिना गरज़ क़ुछ भी लुटाना ना आया
सही मान लें जिसको यह दुनियां वाले
समझ कोई ऐसा बहाना ना आया