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कट गए रूख उजर गईं डाँगें / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
कट गए रूख उजर गईं<ref>नष्ट हो गईं</ref> डाँगें<ref>जँगल</ref>
बोलौ अब का हुइयै आँगें<ref>आगे</ref>
उन्नन<ref>कपड़ों के</ref> बिना उघारे हैं हम
फैशन फिरत उघारें जाँगें<ref>जाँघ</ref>
सबरे मान्स झरे<ref>ख़ाली</ref> बैठे हैं
की सें कयें कौन सें माँगें
रीती<ref>ख़ाली</ref> डरी अरगनी<ref>अलगनी</ref> कब सें
का बिछाय,ओढ़ें,का टाँगें
मेंनत में जो सँग नहीं हते
लैवे ठाँड़े सब सें आँगें
शब्दार्थ
<references/>