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कठिन करेजौ जो न करक्यौ बियोग होत / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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कठिन करेजौ जो न करक्यौ बियोग होत
तापर तिहारौ जंत्र मंत्र खंचिहै नहीं ।
कहै रतनाकर जरी हैं बिरहानल मैं
ब्रह्म की हमारैं जिय जोति जंचिहै नहीं॥
ऊधौ ज्ञान-भान की प्रभानि ब्रजचन्द बिना
चहकि चकोर चित चोपि नचिहै नहीं ।
स्याम-रंग-रांचे साँचे हिय हम ग्वारिनि कै
जोग की भगौंहीं भेष-रेख रंचिहै नहीं ॥55॥