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कठिन समय / ज्योति रीता
Kavita Kosh से
एक समय
जब माँऐं रातों में
बार-बार उठकर
देखे बेटी को,
जब पिता
बार-बार
पूछे पत्नी से
गुड़िया घर पर ही है ना
घर पर ही रखना,
जब माँऐं
खुद ही
लगाने लगे पहरे
बेटियों पर,
शाम होते ही
वापस लौट आने की
देने लगे नसीहत,
हर क़दम पर
साथ रहने की सोचे,
जब पिता लाडली को
स्कूटी से आना-जाना
बंद करवा दे,
भाई खुले बालों से ऐतराज़ करे,
जब लड़कियाँ
देव-स्थलों में भी
मूर्तियों के सामने
रौंदी जाये
और देवता
असहाय अपाहिज हो जाये,
जब लड़कियाँ
स्कूल-कॉलेज
दोस्तों के बीच
असुरक्षित-सी रहने लगे,
अपनों के साथ भी
असहज महसूस करे
ममत्व भरे स्पर्श से
कतराने लगे,
जब बेटियाँ
सहमी-सहमी-सी
बंद कमरे में
सिसकने लगे,
तो समझो
कठिन समय से
गुजर रही है लड़कियाँ।