कड़े परिश्रम का फल मीठा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मत जाना तुम बाहर बापू,
मत जाना तुम बाहर।
गली-गली में बैठे कुत्ते,
बीच सड़क पर नाहर।
बापू बीच सड़क पर नाहर।
यदि जाओगे बाहर बापू,
लपक पड़ेंगे कुत्ते।
यह भी हो सकता चढ़ जाओ,
तुम नाहर के हत्थे।
नाहर हों या कुत्ते दोनों,
हैं भूखे, जग जाहिर।
बापू मत जाना तुम बाहर।
टांग पकड़कर कुत्ता खींचे,
नाहर गुर्राता है।
खींचतान या गुर्राना ही,
दुनिया को भाता है।
ढोंग दिखावा पदवी के सब,
हैं दीवाने कायर।
बापू मत जाना तुम बाहर।
बापू बोले डरकर जीना,
भी कैसा है जीना।
बनो बहादुर बह जाने दो,
अपना खून-पसीना।
विजय सदा उनको मिलती जो,
संघर्षों में माहिर।
बेटा मैं जाऊँगा बाहर।
डरे-डरे से नदी किनारे,
खड़े रहे क्या पाया।
जिसने मारा गोता उसमें,
मोती वह ले आया।
कड़े परिश्रम का फल मीठा,
कहते हैं कवि शायर।
बेटा मैं जाऊँगा बाहर।