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कत'आ / ब्रजेन्द्र 'सागर'
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इससे बढ़कर मलाल शायरी में क्या होगा
लिखता हूँ जिसके लिए उसको गुमान ही नहीं
समझे मुझे सारा जहाँ तो भी क्या हुआ
गर जज़्बा मेरा जिसके लिए उस पर अयान ही नहीं