भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कत‍आत / नक़्श लायलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

नक़्श से मिलके तुमको चलेगा पता
जुर्म है किस क़दर सादगी दोस्तो

2.

कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में

3.

हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमाँ होकर
क्यों न इंसाँ से मुहब्बत करें इंसां होकर

4.
 
ये अंजुमन, ये क़हक़हे, ये महवशों की भीड़
फिर भी उदास, फिर भी अकेली है ज़िंदगी