भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कथा कहो तो / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निश्चित है
सब कुछ बदलेगा
तुम सपनों की कथा कहो तो

आसमान से नीचे आकर
छत पर बूढ़ा चाँद हँसेगा
जंगल होगा - बौने होंगे
परियों का फिर गाँव बसेगा

नदी हमारी
निर्मल होगी
तुम लहरों के संग बहो तो

ठूँठ हुआ है जो यह बरगद
उसमें नई कोंपलें होंगी
दुआ फलेगी साधु की फिर
नहीं रहेगा कोई ढोंगी

गीत बनेंगे
सारे पल-छिन
तुम दूजों के दर्द सहो तो

महिमा सपनों की गाथा की
बच्चे फिर से बच्चे होंगे
साँस-साँस में ख़ुशबू होगी
रिश्ते सीधे-सच्चे होंगे

दिन
जाने-पहचाने होंगे
तुम अपने घर-घाट रहो तो