भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कथा कौन-सी / राजा अवस्थी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी ही पीड़ा के पन्ने
बाँच नहीं पाये
 तुमको वे कैसे समझाते
 अर्थ व्यथाओं के.

कई पीढ़ियों से पुरखों ने
पोथी सत्यनारायण बाँची;
किसने कही, सुनी किसने थी
कथा कौन-सी, कैसी साँची;

नई खाद का असर
छोड़ बैठे यजमान को
 पोते पूछ रहे बाबा से
 अर्थ कथाओं के.

तोता हुंकारी भरता है
चिड़िया अमर कथा कहती है;
मन की मैना तन कोटर में
अपने में खोई रहती है;

सदियों के अनुभव
दादी समझाती-गाती हैं
 अक्षर-अक्षर खोल रहे हैं
 अर्थ प्रथाओं के.

शिव की अमरकथा को सुनकर
अमर हुए तोते की गाथा;
सोयीं उमा जानकर शंकर
पीट रहे हैं अपना माथा;

गली-गली शुकदेव
कथा का गायन करते हैं
 मथुरा वृन्दावन में मेले
 संत कथाओं के.

वहीं मत्स्यगंधा का किस्सा
ठगी गई द्रौपदी वहीं है;
त्यक्त धनुर्धर वहीं कर्ण-सा
गांधारी की आँख वहीं है;
 
मोह और कर्तव्य-न्याय का
द्वन्द्व नहीं छूटा
 पृष्ठ भरे इन धृतराष्ट्रों से
 अमर कथाओं के.