भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कथि केरा उखरी, कथि केरा मूसर हे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में दुलहे के द्वारा कूटे हुए चावल को दुलहन के द्वारा फटककर साफ करने, उसे पकाने और दुलहे को खिलाने का उल्लेख है। इस गीत के द्वारा दुलहे दुलहन के गृह-जीवन में प्रवेश करने और उनके कर्तव्यों की ओर संकेत किया गया है।

कथि केरा<ref>किस चीज का</ref> उखरी<ref>ओखल</ref>, कथि केरा मूसर<ref>मूसल</ref> हे।
आहे, कवन दुलहा कुटथिन<ref>कूटते हैं</ref> धान, अठँगर<ref>कन्यादान के पहले के एक विधि, जिसमें दुलहा के अतिरिक्त सात व्यक्ति मिलकर मूसल से धान कूटते हैं औरवही चावल कंगन में बाँधा जाता है</ref> बिधि भारी हे।
सोने केरा उखरी, रूपा केरा मूसर हे।
आहे, रामचंदर दुलहा कुटथिन धान, अठँगर बिधि भारी हे॥2॥
फटकै<ref>फटकने के लिए</ref> ले चलली, सीता दुलहिन हे।
अपना सासु के पुतली<ref>एक प्रकार का घाँघरा</ref> सँम्हारु<ref>सँभालो</ref>, अठँगर बिधि भारी हे॥3॥
नीरहे<ref>राँधने के लिए; पकाने के लिए</ref> ले चलला<ref>चलीं</ref>, रामचंदर दुलहा हे।
अपना बाबू के जीभ सँम्हारु, अठँगर बिधि भारी हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>