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कथि डटा सेज, कथिय डटा कोहबर / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सजे-सजाये कोहबर में दुलहा-दुलहिन सोने गये। पति की बात से रूठकर पत्नी जमीन पर सो गई। पति ने सलहज को बुलाकर अपनी रुष्ट परिणीता पत्नी को मना देने का आग्रह किया। सलहज ने पूछा- ‘अगर मैं अपनी ननद को मना दूँगी, तो तुम मुझे क्या इनाम दोगे?’ दुलहे ने अपनी सलहज को, जिससे उसे मजाक का नाता है, कहा- ‘मैं तुम्हारी दसों उँगलियों में अँगूठी बनवा दूँगा और तुमहारी गोद में एक सुंदर पुत्र दे दूँगा।’ सलहज ने अपने ननदोई की बातों में रस लेते हुए उसे गालियाँ दीं और कहा- ‘क्षण-क्षण में ही यह मेरी ननद को रुठा देता है और मुझे मनाने को कहता है।’

कथि<ref>किस चीज का</ref> डंटा सेज, कथिय डंटा कोहबर।
कथिय चौखटिया<ref>चौखट</ref> लागल केबार रे, सीताजी के कोहबर॥1॥
सोने डंटा सेजिया, रूपे डंटा कोहबर।
चनने चौखटिया लागल केबार रे, सीताजी के कोहबर॥2॥
तहिं<ref>उसमें</ref> पैसी सूते गेला, ननुआ<ref>छोटे बच्चे के लिए प्यार का संबोधन</ref> दुलरैते नुनुआ।
जौरे<ref>साथ में</ref> पंडितबा केरा धिया रे, सीताजी के कोहबर॥3॥
अलग सूतू बलग सूतू, सुहबे<ref>सुगृहिणी; सुहागिन</ref> दुलरैते सुहबे।
तोरो घाम<ref>पसीना</ref> चदरिया मैली होय रे, सीताजी के कोहबर॥4॥
एतना बचनिया जबे, सुनलनि दुलरैते सुहबे।
खाटी छोड़ि भुइयाँ लोटल रे, सीताजी के कोहबर॥5॥
अँगिना बोहरैते तोंहे, सलखो गे चेरिया।
सरहोजिया देहि नऽ बोलाय रे, सीताजी के कोहबर॥6॥
भले भले सरहोजिया, अपने चलि ऐलै।
रुसली ननदिया बौंसी देहो रे, सीताजी के कोहबर॥7॥
जौं तोरा अहे ननदोसी, ननदिया बौंसी देबौ।
हमरा के किय देबऽ दान रे, सीताजी के कोहबर॥8॥
दसो अँगुरिया सरहोज, दसो मुँदरिया।
गोदे गजाधर पूत रे, सीताजी के कोहबर॥9॥
अनारी के नाती, छिनारी के पूता।
छन छन ननदिया के रुसाबे रे, सीातजी के कोहबर॥10॥

शब्दार्थ
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