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कन्याकुमारी : सूर्योदय : सूर्यास्त / दूधनाथ सिंह

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काले समन्दर में अचानक एक लाल स्तम्भ उगता है ।

लहर-लहर मारती है गैंती--टूटकर फैलता है लाल रंग

एक ग़ुस्सैल इशारे की तरह

तमतमाता हुआ सूरज

उठता है : गिरता है


काला समन्दर फिर

अपना वही अट्टहास-- शुरू करता है


लौटते हैं हम चुपचाप ।


शुरू होती है कविता फिर

एक चीख़ की मानिन्द ।