भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कन्यादान / मणिका दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
सखियों के संग ठिठोली करने की एक शाम
'राजा ने हुक़्म सुनाया है, पीछाकरने पकड़ने का...'
जाने किसने कहा था मेरे कानों में
पीछे पोशाक की तरफ़ देखो...

2.

महिलाओं की मंगलध्वनियों
से सराबोर कर
माँ ने समेटकर रखा मुझे
शयनकक्ष के एक कोने में
धड़कते हुए नन्हे कलेजे के संग

3.

सात दिन सात रातें, मुझे छोद़्अकर किसके क़रीब चले गए
फूल और तितली
सिरहाने मेम पसारकर
टोकरी भर चावल, माटी का एक दिया
मेरे सुख-दुख, मेरे स्वप्न-दुस्वप्न के

4.

उन सात दिनों की वीरान दोपहरियों में
तुमने शायद ढेर सारी करौंजी बटोरी
या गए थे पागल दिया नदी के उस पार खेतों में
पुआल ढूँढ़ने
तुम पुआल की बाँसुरी इतनी अच्छी तरह बजाते हो

5.

सात दिन सात रातों के बाद
माँ ने सतर्क किया था नहीं खेलने के लिए तुम्हारे साथ
गुड्डा-गुड्डी का खेल
नहीं बटोरने के लिए पके हुए बेर-करौंजी
सात दिन सात रातों के बाद
मेरे गाल पर क्यों खिले थे अमलतास के दो गुच्छे
क्या तुम समझ पाए थे।