भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कपड़े धोती हुई कवयित्री / आन्ना स्विरषिन्स्का / सिद्धेश्वर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत हुई टाइपिंग
आज कपड़े धो रही हूँ मैं
पुराने तरीके से
— मैं धो रही हूँ
— पछीट रही हूँ
— निचोड़ रही हूँ
वैसे ही जैसे कि धोया करती थीं
मेरी तमाम परदादियाँ - परनानियाँ
इत्मीनान से ।

सेहत के लिए अच्छा है कपड़े धोना
और हो जाता है काम का काम भी ।
लेकिन एक धुली हुई कमीज़ की तरह
हमेशा संशयपूर्ण होता है लिखना
मानो किसी सादे काग़ज़ पर
टाइप कर दिए गए हों
तीन प्रश्नवाचक चिह्न।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह