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कबलौं ऐसे स्याम! निभैगी / स्वामी सनातनदेव

राग केदार, तीन ताल 24.9.1974

कबलौं ऐसे स्याम! निभैगी।
सदा-सदा के रहे सँगाती, कबलौं ओट रहैगी॥
बनी ओट ही चोट प्रानधन! कबलौं हियो दहैगी।
तरसत-तरसत बयस सिरानी, कबलौं तरस रहैगी॥1॥
ऐसी कहा चूक भइ प्यारे! कबलौं यह न चुकैगी।
विरह-व्यथा की कथा कहो यह कबलौं स्याम! मुकैगी<ref>समाप्त होगी</ref>॥2॥
अबलाकांे यह बला लगायी, कबलौं भला चलैगी।
दरस-परस की सरस माधुरी का कबहूँ न मिलैगी॥3॥
मैं तो हार गयी, यह काया कबलौं भार बहैगी<ref>ढोवेगी</ref>।
अबलौं बहुत सही पै आगे कबलौं विरह सहैगी॥4॥
दूर करो यह ओट नेह निधि! कबलौं यों निबहैगी।
फिर तो मधुर मिलन सांे प्रिय! हिय में रसधार बहैगी॥5॥

शब्दार्थ
<references/>