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कब तक सहें / राधेश्याम बन्धु
Kavita Kosh से
यातना यह
और हम कब तक सहें ?
चतुर्दिक व्याप्त
गीदड़ -भेड़िए
मांस के भुक्खड़
ठसाठस भर चुके नुक्कड़
बंद दरवाजे
हमारी खिड़कियाँ
कब तक रहें ?
तोड़ते दम
सूर्य -पथ पर
रोज ही एहसास
गुमसुम मौन है आकाश
उफ़ !सहमती
इस हवा के साथ
हम कब तक बहें ?
बंधु मेरे ! यातना यह
और हम कब तक सहें ?