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कब तलक़ वादों से ही जीवन गुज़ारा जाएगा / मधु 'मधुमन'
Kavita Kosh से
कब तलक वादों से ही जीवन गुज़ारा जाएगा
कब जमीनों पर हक़ीक़त को उतारा जाएगा
हर सहूलत है अमीरों के लिए ही बस यहाँ
कब गरीबों का मुक़द्दर भी सँवारा जाएगा
है हमारी अहमियत बस एक दिन के ही लिए
वोट की खातिर ही बस हमको दुलारा जाएगा
आपके ये राजसी जो ठाठ हैं हमसे ही हैं
इस हक़ीक़त को भला कब तक नकारा जाएगा
अपने हक़ के वास्ते लड़ना ही होगा अब हमें
अब नहीं जागे तो ये हक़ भी हमारा जाएगा
आजकल वह उड़ रहा है होश आएगा उसे
आसमाँ से जब ज़मीं पर वह उतारा जाएगा
कह दिया हमने तो ‘मधुमन’ जो हमारे दिल में है
बात निकली है तो उस तक भी इशारा जाएगा