भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब तलक आखिर रहेगी बे-ज़ुबानी आपकी / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
कब तलक आखिर रहेगी बे-ज़ुबानी आपकी
अब तो हो जाए ख़ुदारा मेहरबानी आपकी
आपका तर्ज़ ए सुखन हम को न रास आया कभी
दिल जला देती है अक्सर हक बयानी आपकी
आपका एहसास ही तो जिस्म-ओ-जां और रूह है
क्या किसी ने की है ऐसी क़द्रदानी आपकी
इसलिए हरदम ही रहती हूँ नफासत के करीब,
जिंदगी को भी समझती हूँ निशानी आपकी .
ज़ख़्म जैसे बन गए हो आपबीती ए सिया
कर ही देते हैं बयां ये हर कहानी आपकी