भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब याद में तेरा साथ नहीं / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
कब याद में तेरा साथ नहीं, कब हात में तेरा हात नहीं
सद शुक्र केः अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ, दिल बेच आयें जाँ दे आयें
दिल वालो कूचः-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं
जिस धज से कोई मक़तल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है, इस जाँ की तो कोई बात नहीं
मैदाने-वफ़ा दरबार नहीं, याँ नामो-नसब की पूछ कहाँ
आशिक़ तो किसी का नाम नहीं, कुछ इ'श्क़ किसी की ज़ात नहीं
गर बाज़ी इ'श्क़ की बाज़ी है, जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
मांटगोमरी जेल