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कब से बैठे बाट निहारे, अब तो आओ सावन जी / अश्वनी शर्मा
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कब से बैठे बाट निहारे, अब तो आओ सावन जी
उमड़-घुमड़ नभ में छा जाओ, ध्रुपद गाओ सावन जी।
रोज आंधियां, रोज बगूले, रोते-रोते खाली गांव
मोठ-मतीरा, फली-काचरी, कुछ तो खाओ सावन जी।
उजड़ा नीम, फटी धरती, खड़ी खेजड़ी बांझ हुई
भेड़ें गई मालवे सारी, वापिस लाओ सावन जी।
झूले, गोठें, मेले-ठेले, पचरंगी पेचों के पेच
कुंड संवारे, छात बुहारें, जल बरसाओ सावन जी।
कभी गये थे नहीं बावड़े, सूने-सूने खेत पड़े
फिर से खेतों को जीवन दो, छाओ-छाओ सावन जी।