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कभी चले ना गोली / श्रवण कुमार सेठ
Kavita Kosh से
ऐसी भी बंदूकें जिनसे
कभी चले ना गोली,
रंग घोलकर बच्चे उनसे
खेला करते होली।
जब जब ट्रिगर दबायें
ऐसे बंदूकों के बच्चे,
रंगों की बारिश हो जाये
भीगें अच्छे अच्छे।
बूढ़े बच्चे नौजवान सब
बोलें मीठी बोली
ऐसी भी बंदूकें जिनसे
कभी चले ना गोली,
बुरा न माने कोई इन रंगों
में सभी नहाएँ
अपने-अपने गीत प्रेम के
दिल से सभी सुनाएं।
मन से सारे मैल छुड़ा दे
ऐसी हँसी ठिठोली
ऐसी भी बंदूकें जिनसे
कभी चले ना गोली,